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मुनीन्द्र धर्मार्थ ट्रस्ट द्वारा आयोजित कराए जा रहे है कई सफल दहेजमुक्त विवाह

17 मिनट में होने वाले दहेजमुक्त एवं आडम्बर रहित विवाह न केवल चर्चा का विषय हैं बल्कि आश्चर्य का पर्याय भी हैं क्योंकि दहेज से मुक्ति के लिए अनेकों प्रयास किए गए हैं उसके बावजूद इससे निजात नहीं पाई जा सकी। दहेजमुक्त समाज एक लंबे समय से केवल सपनो में रहा किन्तु अब दहेजमुक्त समाज का सपना साकार हो रहा है विश्व के एक प्रतिभाशाली सन्त के सान्निध्य में। 

दहेज प्रथा: एक लंबी कुरीति

दहेज का मतलब स्त्री को विवाह के समय पिता से मिलने वाली सम्पत्ति एवं धन से है। इससे न केवल बेटी के पिता पर असीमित बोझ पड़ता है बल्कि इसके कारण धीरे धीरे बेटियों का जन्म ही अपशकुन से जोड़कर देखा जाने लगा। दहेज प्रथा वर्षों से हमारी सभ्यताओं में अपनी जड़ें जमाये हुए है। इसके उन्मूलन के लिए सरकारी एवं गैर सरकारी स्तरों पर अनेकों कदम उठाए गए। 

किन्तु सभ्यता का एक अहम हिस्सा बन चुकी इस कुरीति को जड़ से खत्म करना लगभग असम्भव सा रहा। समाज का प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में इसमें लिप्त होता रहा। समाज में अनेकों संस्थाएं, महापुरुष, कानून दहेज प्रथा पर अंकुश रखने के लिए अस्तित्व में आये लेकिन दहेजमुक्त भारत का सपना आज से पहले मुकम्मल नहीं हो सका। यदि 2012 के आंकड़ों के हिसाब से देखें तो प्रति घण्टे एक महिला दहेज की आग में जलाई गई है।

भारतीय संविधान के दहेज़ विरोधी कानून

भारत के संविधान में दहेज प्रथा को रोकने के लिए कानूनों को स्थान दिया गया है। ये कानून दहेज प्रथा पर अंकुश रखते हैं। 

  1. दहेज निषेध अधिनियम 1961के अनुसार दहेज के लेनदेन अथवा इसमें सहयोग पर पाँच वर्ष की कैद एवं 15000 रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है।
  2. भारतीय दंड संहिता धारा 489-ए में दहेज उत्पीड़न एवं दहेज की अवैधानिक माँग के चलते पति एवं रिश्तेदारों को 3 वर्ष की कैद एवं जुर्माने का प्रावधान है।
  3. भारतीय दंड संहिता धारा 406 के अनुसार लड़की का धन उसे सौंपने से मना करने पर पति एवं रिश्तेदारों पर 3 वर्ष की कैद एवं जुर्माने का प्रावधान है।
  4. विवाह के 7 वर्ष के भीतर लड़की की मृत्यु होने पर एवं यह प्रमाण प्राप्त होने पर कि मृत्यु के पूर्व उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया है तो भारतीय दंड संहिता धारा 304-बी के अंतर्गत पति एवं रिश्तेदारों को आजीवन कारावास तक हो सकता है।

इतने कानूनों के बनने, महिला सशक्तिकरण के अनेकों प्रयास होने के बावजूद दहेज प्रथा में कोई बदलाव नहीं आया। बेटियाँ जलाई जाती रहीं, दहेज के लेनदेन होता रहा और एक तरफ कानून व्यवस्था से लोग बचते रहे।

मुनींद्र धर्मार्थ ट्रस्ट ने की पहल

सन्त रामपाल जी महाराज पूरे विश्व के एकमात्र तत्वदर्शी सन्त हैं जिनके तत्वज्ञान ने वर्षों पुरानी इस प्रथा को जड़ से उखाड़ फेंका है। सन्त रामपाल जी महाराज से प्रभावित होकर मुनींद्र धर्मार्थ ट्रस्ट संस्था अपने स्तर पर अनेकों दहेजमुक्त विवाह करवा रही है। ऐसा नहीं कि ऐसे विवाहों में वर वधू पक्ष को दहेज के लेनदेन न करने के लिए समझाया जाता है। बल्कि वे स्वयं ही एक रुपए दहेज के लेनदेन के लिए राजी नहीं हैं। 

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सन्त रामपाल जी महाराज के अनुयायी स्वयं ही इस प्रथा से स्वयं को दरकिनार कर चुके हैं। ऐसे विवाह समाज में प्रेरणा और प्रशंसा दोनों का विषय हैं। इन विवाहों को 17 मिनट में बिना किसी आडम्बर के पूरा किया गया। ट्रस्ट द्वारा समय समय पर देहदान एवं रक्तदान शिविरों का आयोजन किया जाता है जो कि समाज के लिए बेहद उपयोगी कार्य हैं।

कहां हुए ये अद्भुत विवाह?

समाज में आये दिन हो रहे और चर्चा का विषय बने ये दहेजमुक्त विवाह पूर्णतः धार्मिक परम्परा के अनुकूल हैं। मुनींद्र धर्मार्थ ट्रस्ट के द्वारा लाड़कुंवर दासी पिता गोपाल दास (सेमली, जिला आगर) का विवाह राकेश दास पिता शिवनारायण (सतगांव) से हुआ

धर्म के अनुकूल हैं ये विवाह

ये विवाह मात्र 17 मिनट में गुरुवाणी के माध्यम से पूर्ण होते हैं। इन 17 मिनटों में विश्व के सभी देवी देवताओं एवं हिन्दू धर्म के तैंतीस करोड़ देवी देवताओं समेत पूर्ण परमेश्वर कविर्देव का आव्हान और प्रार्थना की जाती है। ये सभी देवी देवता अपने स्तर का लाभ विवाहित युगल को सदैव देते हैं। ठीक इसी प्रकार आदिशक्ति ने भी अपने तीन पुत्रो ब्रह्मा, विष्णु और महेश के विवाह किए थे।

सन्त रामपाल जी महाराज ने बनाया दहेजमुक्त समाज

दहेजमुक्त समाज सन्त रामपाल जी महाराज द्वारा बताए गए तत्वज्ञान से सम्भव हुआ है। दहेज प्रथा अभिशाप यूँ ही नहीं कही जाती। दहेज प्रथा ने ही भ्रूण हत्या को जन्म दिया जब लिंग परीक्षण करके बेटियों को गर्भ में ही मार दिया जाना आरंभ हुआ। कोख से बचकर जो बेटियां निकल आईं वो समाज और परिवार के लिए ताउम्र बोझ रहीं और जब ब्याह दी गईं तो ससुराल में जिंदा जलाई गईं। बेटियों के विवाह के लिए माता पिता पर पड़ने वाले असीमित बोझ का वहन करना कितना मुश्किल होगा इसका अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं है। 

वहीं जिस व्यक्ति की एक से अधिक बेटियां हों ऐसे पिताओं के जब घर बिकते हैं तब बेटियों के बसते हैं। लेकिन अब बेटियां बोझ नहीं हैं। बेटियां बिना दहेज के लेनदेन के सुखी वैवाहिक जीवन केवल सन्त रामपाल जी महाराज के तत्वज्ञान से व्यतीत कर रही हैं। अधिक जानकारी के लिए डाउनलोड करें सन्त रामपाल जी महाराज एप्प या देखें सतलोक आश्रम यूट्यूब चैनल।

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